क्या कहेंगे लोग, जी रही हूं मदमस्त फ़िक्र नहीं है क्या कहेंगे लोग मुझे जानते ही नहीं इसलिए अलग मेरे नाम रखेंगे लोग परवा नहीं कि मेरे फैसलों का तिरस्कार करेगें लोग ज़ी ही लेती हूं दिल खोल कर रोज़ सोचती हूं कल सुनते है ना दिल कि क्या कहेंगे लोग क्या कहेंगे लोग