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मनहरण घनाक्षरी छंद देख सांवरे की लट, चल रही अट पट

मनहरण घनाक्षरी छंद

देख सांवरे की लट, चल रही अट पट,
चुनरिया कहूं और, मैं तो कहूं और हूं।।

देखिकै बिहारी जी कूं, सुध बुध खोए देऊं,
सुन बंसी धुन मैं हूं,डोलूं चहुं ओर हूं।।

रास हूं रचावै कान्हा, सब कूं रिझावै कान्हा,
जौन डगर जावै मैं, जाऊं वही ठौर हूं।।

ग्वाल बाल संग लै के,माखन चुराई लेत,
ऐसी छवि देखबे कूं,बावरी सी भोर हूं।

©Dr Nutan Sharma Naval
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