कागज़ के मै फूल बनाऊँ ,ना बाबा कोरे सच को झूठ बताऊँ, ना बाबा मात पिता हैं देव धरा के, छोड़ इन्हें दर दर जाके शीश झुकाऊँ,ना बाबा गैरों के घर आग लगाके, घर अपने खुशियों वाले दीप जलाऊँ,ना बाबा खुद्दारी की सूखी रोटी अच्छी है तलवे चाटूँ, मौज उड़ाऊँ ,ना बाबा कलम बेचकर सत्ता की गलियारों में मंचों पर चढ़ नोट कमाऊं,ना बाबा कागज़ के टुकड़ों की खातिर,खुश होकर मैं अपना ईमान डिगाऊं ,ना बाबा नमक लिये बैठे हैं सब तैयार 'जगन' इस दुनिया को जख्म दिखाऊँ, ना बाबा गजल by संदीप'जगन'