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कैसी ये प्यास है किसकी तलाश है? कभी न खत्म होने व

कैसी ये प्यास है किसकी तलाश है? 
कभी न खत्म होने वाली ये तलाश,
अन्तश् के किसी कौने में सिमटी हुई ,
असीमित दर्दीली चुभन,
आकार इस अनन्त फैले मरुस्थल की तरह,
न मिटती है न थकती है ना ही विस्मृति की ओर ले जाती है ,
बता नहीं  सकता ये मन , 
वह उस तड़प  से  हृदय के चित्कार पर  विराम नहीं  सह सकता 
वह तलाश ,वह दर्द ,वह अतृप्त   प्यास 
तपती रेत में , एक  पग को सौ - सौ पगों से नापते हुए 
एक बीतराग अपने ही उस अनमोल रत्न को  तलाश करने निकला इस  विशाल फैली मरु भूमि में ,
थरथराते  पग धराता , तलाशता उसे ,
जिसे कस्तूरी की तरह  उर में बसा के रखा है 
जानते हो क्यूं  ,
क्योंकि उसने  इस जर्जर मरुस्थल को ,
दो बूंद अमृत  पिलायी थी ,
फिर से उस अमृत की चाह में 
मेरी विदीर्ण  काया  भटक रही है 
कभी न खत्म होने वाली  तलाश में ।
ये मेरी  असीमित  अतृप्त प्यास
कभी न मिलने वाले  हिरण की तलाश ।। अतृप्ता की तलाश
कैसी ये प्यास है किसकी तलाश है? 
कभी न खत्म होने वाली ये तलाश,
अन्तश् के किसी कौने में सिमटी हुई ,
असीमित दर्दीली चुभन,
आकार इस अनन्त फैले मरुस्थल की तरह,
न मिटती है न थकती है ना ही विस्मृति की ओर ले जाती है ,
बता नहीं  सकता ये मन , 
वह उस तड़प  से  हृदय के चित्कार पर  विराम नहीं  सह सकता 
वह तलाश ,वह दर्द ,वह अतृप्त   प्यास 
तपती रेत में , एक  पग को सौ - सौ पगों से नापते हुए 
एक बीतराग अपने ही उस अनमोल रत्न को  तलाश करने निकला इस  विशाल फैली मरु भूमि में ,
थरथराते  पग धराता , तलाशता उसे ,
जिसे कस्तूरी की तरह  उर में बसा के रखा है 
जानते हो क्यूं  ,
क्योंकि उसने  इस जर्जर मरुस्थल को ,
दो बूंद अमृत  पिलायी थी ,
फिर से उस अमृत की चाह में 
मेरी विदीर्ण  काया  भटक रही है 
कभी न खत्म होने वाली  तलाश में ।
ये मेरी  असीमित  अतृप्त प्यास
कभी न मिलने वाले  हिरण की तलाश ।। अतृप्ता की तलाश

अतृप्ता की तलाश #कविता