आखिर इंसान इंसान में ये भेद कैसा, जाति धर्म का भेद बस संकीर्णता का खेल जैसा, मनुष्य होकर मानवता का अभाव वैसा, भरी बरसात में मानो हो जैसे सावन प्यासा। ईश्वर ने तो बस हमको वक्सा मानव जीवन, फिर इतनी जाति धर्मों में ये बटवारा कैसा, जब विधाता की ये संरचना एक जैसी, फिर इंसान की सोच में इतना फर्क कैसा । मनुष्य होकर मनुष्यता का भेद ना जाना, जीवन भर जाति धर्म को ही अपना माना, इसी में बस डूब कर्म से रहा अनजान, देखो आज कहां से कहां आ गया जवाना,। आओ हम सब अब जाति धर्म का भेद मिटाएं, इंसानियत के दिल का ये शूल हटाएं, हम मानव हैं बस मानव बन जाए, जाति धर्म के फेर से अपना ये देश बचाए। ©Dayal "दीप, Goswami.. धर्म जाति का ये भेद कैसा*** #OneSeason POOJA UDESHI Omi Sharma Anshu writer Antima Jain Neetu Sharma bhamini Purnima Chauhan