मृगतृष्णा हो तुम मेरे सुनहरे स्वप्नो मैं जीती हुं घूंट घूंट तेरे प्यार का धीमे-धीमे अपने अंदर लेती हूं, जलती रहती है तेरी सांसों की तपन में बरखा बन तुझको और भिगोती हूं, है भंवरा तेरा मन मचलता है मेरी भीनी सुगंध से कस्तूरी बन मैं तुझमे ही रहती हूं। #मेरीक़लमसे #इशक #yqquotes #kavita #kavishala #yqlove #yqaestheticthoughts