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ग़मों ने छोड़ा नही साथ ज़िन्दिगी का मैं कैसे पेश

ग़मों ने छोड़ा नही साथ 
ज़िन्दिगी का
 मैं कैसे पेश कर गीत कोई ख़ुशी का

अगर कहोगे तो यूंही मुस्कुरा देंगे 
सुना देंगे कोई शेर बेबसी का

आँखों को अँधरों की आदत सी हो गई है 
चुभता है नज़रों को मेरी मंज़र रौशनी का

औरों की तरह मेरे कई ख़्वाब हैं मगर
 मंजूर नही क़िस्मत को साथ चाँदनी का

न होता पेश अगर मैं हुजूरे ख़ुदा
, इरादा किया था मैने भी खुदकुशी का


मुहब्बत से निकलके इश्क़ में हम मुंतक़िल न हुए
 उल्फ़त में ये आलम है, आलम क्या होगा आशिक़ी का

वक्ते नज़र में ख़त आया के अब न मिल सकेंगे 
कब से मुंतज़िर था मैं उनकी हाज़री का

ग़मों के अय्याम में बता रही है तुम्हारी बेख़ुदी "सम्राट"
 तुम समझे नहीं फलसफा ए ज़िन्दगी का दिल की बात शायरी के साथ
ग़मों ने छोड़ा नही साथ 
ज़िन्दिगी का
 मैं कैसे पेश कर गीत कोई ख़ुशी का

अगर कहोगे तो यूंही मुस्कुरा देंगे 
सुना देंगे कोई शेर बेबसी का

आँखों को अँधरों की आदत सी हो गई है 
चुभता है नज़रों को मेरी मंज़र रौशनी का

औरों की तरह मेरे कई ख़्वाब हैं मगर
 मंजूर नही क़िस्मत को साथ चाँदनी का

न होता पेश अगर मैं हुजूरे ख़ुदा
, इरादा किया था मैने भी खुदकुशी का


मुहब्बत से निकलके इश्क़ में हम मुंतक़िल न हुए
 उल्फ़त में ये आलम है, आलम क्या होगा आशिक़ी का

वक्ते नज़र में ख़त आया के अब न मिल सकेंगे 
कब से मुंतज़िर था मैं उनकी हाज़री का

ग़मों के अय्याम में बता रही है तुम्हारी बेख़ुदी "सम्राट"
 तुम समझे नहीं फलसफा ए ज़िन्दगी का दिल की बात शायरी के साथ