" रात की वेदना" सूरज के सामने ये खड़ी चुनौती है, तारों की महफ़िल मे धूम मची बैठी है , चाँद को होती न खुद पे यकीं है , ये रात क्यू होती, ये रात क्यू होती है ?😢 उदय हुआ तो ये अस्त क्यू होती है , ये संसार आलस्य मे मस्त क्यू होती है , ये काल्पनिक मौत की विकल्प न होती है , ये सपना ये छाया प्रकल्प क्यू होती है , ये रात क्यू होती, ये रात क्यू होती है ?😒 अम्बर मे भटका ये उल्का क्या कहता है , जुगनु की रौशनी ये विचलित क्यू करता है ? न जाने की रात को ये उल्लू क्यू आती है , अशुभ का संदेश इस जहां मे फैलाती है | जीतता अंधेरा , क्यू हारती ये ज्योती है , ये रात क्यू होती , ये रात क्यू होती है ?😩 ये मातम सा हर दिन छा जाता जहां पे , ये चिड़िया की बोली खो जाती कहाँ पे | सून चौकीदार की सीटी की ध्वनी, मानो लगता की कोयल गाती है व्यथा मे| ये विचलित घड़ी प्रतिदिन क्यू ही होती है, ये रात क्यू होती ये रात क्यू होती है ?😣 न होती गर रात तो वन्दन-सी होती, वृंतो पे बैठी ये चिड़िया ना रोती | न सपने ही आते, न कमियां ही खिलती, अकेलापन की ये सदमा ना पलती| इस जहां मे आलस्य की जगह भी ना होती, ये रात ना होती, ये रात ना होती |😭😭😭 --- मदन कुमार झा ©Madan Kumar Jha poem #Moon