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सागर क़ी उदवेलित विचलित लहरे किनारो को ढूंढती है

सागर क़ी उदवेलित विचलित लहरे
किनारो को  ढूंढती  है  और किसी तरह  जी भी लेती है
लेकिन  आज तक मै जान नहीं पाया
आखिर  मेरी  सांसे  बिना सहारे कैसे  चलती है.शायद ये  उस   निराकार   क़ी  मेहरबानी
हो सकतो है

©Arora PR
  किनारे
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Arora PR

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किनारे #कविता

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