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सुबह तो हर रोज सराहा जाता है इश्क मेरा फिर वही इश्

सुबह तो हर रोज सराहा जाता है इश्क मेरा
फिर वही इश्क शाम को जलील होता है

पेहले पेहर तो बहोत प्यारा लगता इश्क मेरा
फिर वही इश्क शाम को अश्लील होता है

फैसला उन्ही का माना जाएगा हर रोज
क्यूंकि जज भी तो उनको ही बनाया है

वो अलग बात है कि मेरा दिल ही
मेरे इश्क का वकील होता है

पेहले तो बड़ा प्यारा लगता है 
मेरे इश्क में हर केहना मेरा

फिर वही केहना गुनाहों में 
कैसे तब्दील होता है

सजा तो नही मिलती मगर
तारीख हर रोज मिलती है मुझे

क्यूंकि मेरा दिल ही
मेरे इश्क का मुअकिल होता है

©vikrajgill
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