जो बजें बांसुरी कान्हा की , तो राधा ढूंढने लगतीं हैं !! सब छोड़-छाड़ बन्धन जग के वो बेसुध झूमने लगतीं हैं !! तुम कहती हों मैं राधा हूं और मुझको कृष्ण बतातीं हों !! यें प्रेम तुम्हारा तिनके-सा , पर्वत-सा स्नेह जतातीं हों !! मीरा से मेरा नाता क्या , न बसीं गोपियां इस मन में !! न वृक्ष कोई , न वन है यहां , एक राधा-तुलसी आंगन में !! यें प्रेम यदि परिभाषा हैं , तो तुम ही इसका सार बनों !! मैं गोवर्धन उंगली पर उठा लूं , बस तुम मेरा आधार बनों !! मैं मन से तुम्हें पुकारूं जो , तो क्या तुम सुनकर आओंगी !! खुद मोर पंख बनकर मेरा क्या हर पल साथ निभाओंगी !! यदि मैं पत्थर हो जाऊं , तो तुम सरिता बनकर बह जाना !! वरना तो यें सब बातें हैं , न तुम राधा - न मैं कान्हा !! #प्रेम_रचना #प्रेम_पर_चिंतन #प्रेम_पराग #प्रेमी