पीड़ितों को न्याय दिलाने को 'रत्नेश'! अस्त्र-शस्त्र तुम अपना तैयार रखो। पता नहीं कब रण का बिगुल बज जाये; तुम्हें फौरन हीं रणक्षेत्र में जाना पड़ जाए? पीड़ितों को न्याय दिलाने को 'रत्नेश'! मर्यादाएँ तुम अपनी तोड़ जाओ। अन्याय को अन्याय से तुम हराओ; गर न्याय से अन्याय को तुम हरा न पाओ। न्याय पाने को तूने हरेक दरवाजा खटखटाया। बावजूद न्याय तुम्हें न्याय दिला न पाया। बहरे न्यायतंत्र के कान खोलने को खुदीराम वाला 'रत्नेश' तुम विस्फोट करो। - Ⓒ रत्नेश पीड़ितों को न्याय दिलाने को 'रत्नेश'! अस्त्र-शस्त्र तुम अपना तैयार रखो।