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बुद्धु बन पछताएगा,लौट घर वापस आएगा ---------------

बुद्धु बन पछताएगा,लौट घर वापस आएगा
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गिनती के लिए विनती कैसी, 
तू शेर अकेला चमकेगा ,
तू ज्ञान,शक्ति,भारी भरकम,
आदित्य एक ही ,दमकेगा ।
ये राजनीति से भटके हैं, 
ये क्या जाने इसका प्रतिफल,
ये तब लौटेंगे घर वापस,
जब चलता पहिया अटकेगा।
पर तब तक होगी देर बहुत, 
काफी कुछ साथ नहीं होगा,
बेचैन सा सिर खुजलाएगा,
खाली हाथों को झटकेगा।।
षड़यंत्र का भागीदार है तू,
करले मन की,तू भी करले,
कल का शिकार प्रिय तू ही है,
तू भी आँखो में खटकेगा।
वापस आने का मौका है,
दूर मृगमरीचिका, धोखा है,
यदि नहीं लौटा और देर हुई
पछताएगा,सिर पटकेगा।।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  बुद्धु बन पछताएगा, 
लौट घर वापस आएगा

बुद्धु बन पछताएगा, लौट घर वापस आएगा #कविता

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