कागज की कश्ती , तूने भी बनाई होगी। बारिश के पानी मे खूब दौड़ाई होगी। खूब मजा आया होगा। जिस दिन ये दोडी थी। कभी तूने किसी गोपी की। मटकी फोड़ी थी। बड़े प्यार से लोग तुझे गोद मे उठाते थे। तुझे देख देख कर घण्टो मुस्कराते थे। वो मेले की जिद तूने भी करी होगी। पहली बार मम्मी भी थोड़ी डरी होगी। पापा के कंधों ने उस दिन सारा मेला दिखाया होगा। महंगे खिलौनों से तुझे उस समय खिलाया होगा। याद है एक दिन तू बीमार हुआ था। पापा उस दिन बडा परेशान हुआ था। मम्मी भूखी प्यासी मंदिर में जाती थी। तू जल्दी ठीक होगा यही दिलासा पाती थी। आज हम अपने जीवन मे मशगूल हो गए है पापा के चश्मे लाना भी भूल गए है। भूल गए हम उनकी आंखों के पानी को। भूल गए हम उनकी अमर कहानी को। भूल गए............. रमेश कुमार भूल गए