सदमे मे है वो सख्श, क्या बयां करे दर्द अपना जी नही सकता ,ना ही मरने की मंञूरी है.. सदमे मे है वो सख्श.... जब भी उठता है गिरा देते थे अपने चलने लगा जब काटें बिछा देते थे अपने क्या करे बेचारा नसीब का मारा..! सदमे मे है वो सख्श.... सपने देखता बहुत है अपनी कामयाबी के पर थप्पड़ मार के उठा दिया जाता है उड़ना चाहता है आसमान मे जंजीरो से जकड़ के घर बैठा दिया जाता है.. सोचा था उसने क्या क्या, पर समय बितता गया सदमे मे है वो सख्श....!! ©Shreehari Adhikari369 #सदमे मे है वो सख्श... #WorldPoetryDay