गर बेहतर की उम्मीद की, तो गुनाह क्या किया। गर स्वपन की तस्वीर की, तो गुनाह क्या किया। गर रख्त-ए-हयात उसकी की, तो गुनाह क्या किया। गर कलम ने दम ए तहरीर में उसे चुना, तो गुनाह क्या किया। गर नीरव से आंचल में वो ख्याल बुना, तो गुनाह क्या किया। गर पुर सुकून की चाहत की, तो गुनाह क्या किया। अहल ए दिल में मोहब्बत की बिसात की, तो गुनाह क्या किया। सहभागिता सबके लिए खुली है |#आपकी_सहेली ✍️ शब्दों की मर्यादा का ध्यान अवश्य रखे सभी प्रतिभागी अपनी अभिव्यक्ति के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं। आज का शीर्षक है : #गुनाह_क्या_था