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इल्जाम है मुझ पर के मैं मिलता नहीं , कह दो उन्हें

इल्जाम है मुझ पर के मैं मिलता नहीं ,
कह दो उन्हें मैं बिछड़ने से डरता हूं ,

हर काम जो रुसवा करे करता हूं वो ,
शैतां की सफ में पिछड़ने से डरता हूं ।।

मैं ये जहां बिल्कुल नहीं अब देखता ,
मैं ख़ुद से खुद के निकलने से डरता हूं ।।

गुस्सा मुझे ही मारता है हर दफा ,
अब दूसरों पर भड़कने से डरता हूं ।।

©Zoga Bhagsariya
  इल्जाम है मुझ पर के मैं मिलता नहीं ,
कह दो उन्हें मैं बिछड़ने से डरता हूं ,

हर काम जो रुसवा करे करता हूं वो ,
शैतां की सफ में पिछड़ने से डरता हूं ।।

मैं ये जहां बिल्कुल नहीं अब देखता ,
मैं ख़ुद से खुद के निकलने से डरता हूं ।।

इल्जाम है मुझ पर के मैं मिलता नहीं , कह दो उन्हें मैं बिछड़ने से डरता हूं , हर काम जो रुसवा करे करता हूं वो , शैतां की सफ में पिछड़ने से डरता हूं ।। मैं ये जहां बिल्कुल नहीं अब देखता , मैं ख़ुद से खुद के निकलने से डरता हूं ।। #Shayari

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