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गुफ्तगू की चाहत बहुत है,हमको भी तुमको भी.. बस एक "

गुफ्तगू की चाहत बहुत है,हमको भी तुमको भी..
बस एक " मैं " रोके हुए है,हमको भी तुमको भी..

यूँ तो कहने को दिखाने को मशरूफ हैं लेकिन..
बहुत तन्हाई सताती है,हमको भी तुमको भी..

तुमसे लड़ने,बहस करने से डरते नहीं हैं बस..
लबों की खामोशियाँ डराती हैं,हमको भी तुमको भी..

वो किस्से वो,मुलाकातें याद तो खूब आती हैं..
मगर ये ज़िन्दगी की उलझन है,हमको भी तुमको भी..

तुमसे मिलना मिलाना हम-नवां इतना कठिन भी नहीं..
न जाने कौन सी बेड़ी है जकड़े,हमको भी तुमको भी..

एक दौर था कि चैन से सोते थे तेरी यादों के साये में..
न जाने क्यों वही यादें जगाती है,हमको भी तुमको भी..

जिस दिन रुखसत हुए इस दुनियाँ से तो कई लम्हे,कई बातें..
बेतहाशा, मुसलसल रुलायेंगीं,हमको भी तुमको भी..

-✍ पीयूष बाजपेयी 'नमो'
(काव्यपीयूष) #prb #नमो #काव्य_पीयूष #हमको_भी_तुमको_भी  #kaavyapeeyush
गुफ्तगू की चाहत बहुत है,हमको भी तुमको भी..
बस एक " मैं " रोके हुए है,हमको भी तुमको भी..

यूँ तो कहने को दिखाने को मशरूफ हैं लेकिन..
बहुत तन्हाई सताती है,हमको भी तुमको भी..

तुमसे लड़ने,बहस करने से डरते नहीं हैं बस..
लबों की खामोशियाँ डराती हैं,हमको भी तुमको भी..

वो किस्से वो,मुलाकातें याद तो खूब आती हैं..
मगर ये ज़िन्दगी की उलझन है,हमको भी तुमको भी..

तुमसे मिलना मिलाना हम-नवां इतना कठिन भी नहीं..
न जाने कौन सी बेड़ी है जकड़े,हमको भी तुमको भी..

एक दौर था कि चैन से सोते थे तेरी यादों के साये में..
न जाने क्यों वही यादें जगाती है,हमको भी तुमको भी..

जिस दिन रुखसत हुए इस दुनियाँ से तो कई लम्हे,कई बातें..
बेतहाशा, मुसलसल रुलायेंगीं,हमको भी तुमको भी..

-✍ पीयूष बाजपेयी 'नमो'
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