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चार दिन की ज़िंदगी मे,सब एक ही शब्द में घिरे हैं हो

चार दिन की ज़िंदगी मे,सब एक ही शब्द में घिरे हैं
हो रहा किसी के भी मन का नही,फिर क्यों सब मैं-मैं करे हैं।

क्यों न छोड़ सारी उलझनों को ,मिटा दे इस झूठे अहम को 
एक पहल तुम करो ,तो एक पहल हम भी करें
 मिटाने इन दूरियों को।

की बैर हो न ऊंच-नीच का, अंतर दिखे न अमीर-गरीब में
जो बांट दिए हैं अहम में हमने,
करले फिर से उन्हें करीब में।

वक़्त रहते बदला नही ,तो बदल न पायेगा ये समाज कभी,
किताबो की कुछ कविताओं में ही ,लिखा रहै जाएगा ,
भारत की झूठी एकता का बखान कहीं 

तो क्यों न हम अपने भारत को आदर्श बनाये ,
जो हम शुरू से पढ़ते हैं -"हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई ,
आपस मे हैं भाई भाई "
उसे हम ज़िन्दगी में अपनाये।

 तो फिर चलो मिटा दें इन फ़ासलों को
क्यों समाज भेदभाव करता है।
हिन्दू ,मुस्लिम,सिक्ख, इसाई जब सब एक है,
तो फिर क्यों हिन्दू ,भगवान को मंदिर में ,
मुस्लिम अल्लाह को, मस्जिद में ढूँढता है।

--(ziddi girl)✍️





 #life#moral
चार दिन की ज़िंदगी मे,सब एक ही शब्द में घिरे हैं
हो रहा किसी के भी मन का नही,फिर क्यों सब मैं-मैं करे हैं।

क्यों न छोड़ सारी उलझनों को ,मिटा दे इस झूठे अहम को 
एक पहल तुम करो ,तो एक पहल हम भी करें
 मिटाने इन दूरियों को।

की बैर हो न ऊंच-नीच का, अंतर दिखे न अमीर-गरीब में
जो बांट दिए हैं अहम में हमने,
करले फिर से उन्हें करीब में।

वक़्त रहते बदला नही ,तो बदल न पायेगा ये समाज कभी,
किताबो की कुछ कविताओं में ही ,लिखा रहै जाएगा ,
भारत की झूठी एकता का बखान कहीं 

तो क्यों न हम अपने भारत को आदर्श बनाये ,
जो हम शुरू से पढ़ते हैं -"हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई ,
आपस मे हैं भाई भाई "
उसे हम ज़िन्दगी में अपनाये।

 तो फिर चलो मिटा दें इन फ़ासलों को
क्यों समाज भेदभाव करता है।
हिन्दू ,मुस्लिम,सिक्ख, इसाई जब सब एक है,
तो फिर क्यों हिन्दू ,भगवान को मंदिर में ,
मुस्लिम अल्लाह को, मस्जिद में ढूँढता है।

--(ziddi girl)✍️





 #life#moral