अंतर मन मे द्वंद चला हैं, राम के सम्मुख राम खडा हैं। विश्व विजयी जब खुद से मिला हैं, शीश झुकाएं मौन खडा हैं। आघात हुऐ जिस वचन पर वह तो, तन मन घन से दुर चला है। जानकी विजयी त्रिलोकी नंदन, जनता मोह मे छुब्द पडा हैं। अश्व मेघ सा विशाल प्रतिदर्पन, राम खुद से खुद ही लडा हैं। क्यो ठिठुर सा गया हैं ह्रदय, अविरल रहो हे पावन सुख चंदन। मात्रृभुमि के रक्षा जैसी कि, पत्नि संग रहो हें जगत वंदन। मात्रृभुमि का वह रक्त पिसाचुर, जिसने सीता पर क्लेश धरा। निष्कलंक है जगत की जननी, चारो धाम जिनके चरण वरा। ©Gaurav Sankhala #nadanparinda #Rose