एक नदी जो अब बमुश्किल बह रही थी बिना बोले बहुत कुछ कह रही थी पाप पूरी दुनिया के वो अकेले सह रही थी एक नदी जो अब बमुश्किल बह रही थी ©शिवम मिश्र