"मैं नहीं चाहती हूँ" - 'धरती' ******************************** मैं नहीं चाहती हूँ मानव आंचल का मेरे विरंजन हो, मैं नहीं चाहती हूँ मानव नीरों बिन मेरा क्रन्दन हो. मैं नहीं चाहती हूँ मानव श्रृंगार मेरा इतिहास बने, मैं नहीं चाहती हूँ मानव तू कुपित क्रोध का ग्रास बने. मैं नहीं चाहती हूँ कोई मरु में मरु का आहार करे,