जब हम सबको वक्त का आभाव था तो पलके पलकों पर चिपक जाती थी सपनों की चादर में अक्सर नींदें लिपट जाती थी देश की बन्दीं भी कुछ इस कदर सिमट गयी हैं अब गुमनाम सी चिखें हैं जो बस जहन में ही सिसक रहीं हैं #karfue