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एक खत मैंने भी लिखा है, जो मुहब्बत हमारी अधूरी थी,

एक खत मैंने भी लिखा है,
जो मुहब्बत हमारी अधूरी थी,
मैंने उसमें उसे पूरा लिखा है।  मुझे लगता है आज मैं एक डेढ़ साल बाद कागज़ पर लिख रही हूं... हो भी क्यूं न... मैं तुम्हें लिख रही हूं... बहुत ही सरल सहज भाषा में...एक कठिन किरदार लिख रही हूं..!
अलग अलग तरीकों से यहां सब जानना चाहते हैं... कि आखिर मेरी इमारत के पिलर कैसे डगमगाए... कौन है/ था वो...
मैं सोचती हूं अगर तुम न होते... तो आज कइयों को मैं पसंद न होती...
तुमसे मिली... मैंने पहली बार उदासी के दरवाजों पर ठहकर एक अलग दुनिया महसूस करी...
आज भी मुझसे... चकना घुमाते घुमाते अक्सर एक सवाल पूछ लिया जाता है... रिया कौन है वो जिसको तुम कभी रात रात लिखती हो..?
मैं जवाब नहीं देती इस बात को लोग "बहुत गहरी है ये" कहकर बहुत गलत लेते हैं... सच कहूं तो मैं हमारे बारे में कहीं... किसी से कोई बात नहीं करना चाहती हूं... तुम हो/नहीं हो/जा चुके हो.... कोई नहीं जानता... मेरे साथ अब कौन है/कौन नहीं है/मैं किसके साथ हूं... ये भी कोई नहीं जानता है... मैं अपनी चीज़ों/लोगों को लेकर थोड़ी ज़्यादा स्वार्थी हो जाती हूं.... नतीजा इसका... मैंने कभी मेरी कविताओं में तुम्हारा नाम नहीं लिखा... तुम्हें मेरे लिखे में गढ़ा.... मैंने कभी तुम्हारा चेहरा दुनिया के सामने नहीं रखा...
बहुत से सच हैं... जो मैं जानकर अनदेखा करती हूं... कमबख्त हूं... तो तुमसे झूठ ज़्यादा अच्छे लगते हैं....
मैं जानती हूं तुम अब अनुभवों से ऊब चुके हो... सो प्रयोग करने पर अब उतारू हो....मेरे जैसी अल्हड़ लड़कियों को प्रेम नाम का पुल पार कराते घूमते हो... दिखाते हो उदासी के नए नए रास्ते... जो अब तक लगभग अदृश्य थे...
एक खत मैंने भी लिखा है,
जो मुहब्बत हमारी अधूरी थी,
मैंने उसमें उसे पूरा लिखा है।  मुझे लगता है आज मैं एक डेढ़ साल बाद कागज़ पर लिख रही हूं... हो भी क्यूं न... मैं तुम्हें लिख रही हूं... बहुत ही सरल सहज भाषा में...एक कठिन किरदार लिख रही हूं..!
अलग अलग तरीकों से यहां सब जानना चाहते हैं... कि आखिर मेरी इमारत के पिलर कैसे डगमगाए... कौन है/ था वो...
मैं सोचती हूं अगर तुम न होते... तो आज कइयों को मैं पसंद न होती...
तुमसे मिली... मैंने पहली बार उदासी के दरवाजों पर ठहकर एक अलग दुनिया महसूस करी...
आज भी मुझसे... चकना घुमाते घुमाते अक्सर एक सवाल पूछ लिया जाता है... रिया कौन है वो जिसको तुम कभी रात रात लिखती हो..?
मैं जवाब नहीं देती इस बात को लोग "बहुत गहरी है ये" कहकर बहुत गलत लेते हैं... सच कहूं तो मैं हमारे बारे में कहीं... किसी से कोई बात नहीं करना चाहती हूं... तुम हो/नहीं हो/जा चुके हो.... कोई नहीं जानता... मेरे साथ अब कौन है/कौन नहीं है/मैं किसके साथ हूं... ये भी कोई नहीं जानता है... मैं अपनी चीज़ों/लोगों को लेकर थोड़ी ज़्यादा स्वार्थी हो जाती हूं.... नतीजा इसका... मैंने कभी मेरी कविताओं में तुम्हारा नाम नहीं लिखा... तुम्हें मेरे लिखे में गढ़ा.... मैंने कभी तुम्हारा चेहरा दुनिया के सामने नहीं रखा...
बहुत से सच हैं... जो मैं जानकर अनदेखा करती हूं... कमबख्त हूं... तो तुमसे झूठ ज़्यादा अच्छे लगते हैं....
मैं जानती हूं तुम अब अनुभवों से ऊब चुके हो... सो प्रयोग करने पर अब उतारू हो....मेरे जैसी अल्हड़ लड़कियों को प्रेम नाम का पुल पार कराते घूमते हो... दिखाते हो उदासी के नए नए रास्ते... जो अब तक लगभग अदृश्य थे...
mohammedmaster4790

Aahaan

New Creator

मुझे लगता है आज मैं एक डेढ़ साल बाद कागज़ पर लिख रही हूं... हो भी क्यूं न... मैं तुम्हें लिख रही हूं... बहुत ही सरल सहज भाषा में...एक कठिन किरदार लिख रही हूं..! अलग अलग तरीकों से यहां सब जानना चाहते हैं... कि आखिर मेरी इमारत के पिलर कैसे डगमगाए... कौन है/ था वो... मैं सोचती हूं अगर तुम न होते... तो आज कइयों को मैं पसंद न होती... तुमसे मिली... मैंने पहली बार उदासी के दरवाजों पर ठहकर एक अलग दुनिया महसूस करी... आज भी मुझसे... चकना घुमाते घुमाते अक्सर एक सवाल पूछ लिया जाता है... रिया कौन है वो जिसको तुम कभी रात रात लिखती हो..? मैं जवाब नहीं देती इस बात को लोग "बहुत गहरी है ये" कहकर बहुत गलत लेते हैं... सच कहूं तो मैं हमारे बारे में कहीं... किसी से कोई बात नहीं करना चाहती हूं... तुम हो/नहीं हो/जा चुके हो.... कोई नहीं जानता... मेरे साथ अब कौन है/कौन नहीं है/मैं किसके साथ हूं... ये भी कोई नहीं जानता है... मैं अपनी चीज़ों/लोगों को लेकर थोड़ी ज़्यादा स्वार्थी हो जाती हूं.... नतीजा इसका... मैंने कभी मेरी कविताओं में तुम्हारा नाम नहीं लिखा... तुम्हें मेरे लिखे में गढ़ा.... मैंने कभी तुम्हारा चेहरा दुनिया के सामने नहीं रखा... बहुत से सच हैं... जो मैं जानकर अनदेखा करती हूं... कमबख्त हूं... तो तुमसे झूठ ज़्यादा अच्छे लगते हैं.... मैं जानती हूं तुम अब अनुभवों से ऊब चुके हो... सो प्रयोग करने पर अब उतारू हो....मेरे जैसी अल्हड़ लड़कियों को प्रेम नाम का पुल पार कराते घूमते हो... दिखाते हो उदासी के नए नए रास्ते... जो अब तक लगभग अदृश्य थे... #musings #YourQuoteAndMine #yqaestheticthoughts #वाहियात_लेख