एक बार एक बगीचे में बैठी थी। अचानक से अपने ख्यालों में खो गई इस कदर कि अपने आप से बातें करने लगी सोचने लगी अजब-गजब सा।मैंने देखा मैं 10 साल की बच्ची हूंँ (वसुधा)और अपनी परछाई जो कि 60 साल की है (रत्नगर्भा) ,उसके साथ साक्षात्कार बैठी बातें कर रही हूं। मैंने देखा कि मासूमियत से भरी मेरी बातें जिज्ञासा से परिपूर्ण, सच्चाई को जानने के लिए तत्पर जैसे कि पक्षी कैसे उड़ते हैं नदिया कैसे बहती है बारिश कैसे आती है आदि और अनंत सवालों के जवाब देती मेरी 60 साल की तजुर्बे कार परछाई, सपने में 10 साल की मेरी परछाई ने अपनी 60 साल की परछाई से क्या बातें की उसका विवरण:
वसुधा: रत्नगर्भा बता तो ज़रा, पत्ते कैसे हिलते हैं, क्यों नदीया इतनी शांत होती हैं।
रत्नगर्भा : पत्तों की सरसराहट एक संदेश लाए, लगता हैं जैसे कोई तूफान आए, वो रचनाचार सब करवाता हैं ,जिसको कहते विधाता हैं। नदिया हैं माँ समान, सब के दोष धोती हैं, कर के स्नान पापी इसमें मुक्ती का राह बनाता हैं, इसलिए यस शांत होती हैं।
वसुधा: अच्छा, अच्छा, यह बात हैं।
रत्नगर्भा: हां बेटी।
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