तन्हाइयों ने घेर लिया मुझे, सनम के होते हुए, कैसे झूठ को सच लिख दूं, हाथ में कलम होते हुए। तलबगार तो हमारे भी बहुत हैं इस ज़माने में, तुम्हें दिल में कैसे रखें, दिल में एक दिल होते हुए। उसे मैं कहां जाकर आवाज़ लगाऊं, वो किसी और का हो गया मेरा होते हुए। रोग जब मेरा जड़ पकड़ने लग गया, मैंने मां का चेहरा देखा, हाथ में दवाई होते हुए। शायरी की तलब कुछ यूं लग गई है हमें, मैंने ये शायरी लिखी 102 डिग्री बुखार होते हुए। शुभम #dil #ma #mera #tanhai #sanam