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पल्लव की डायरी कैद जिंदगी अपनी ,चंद आकाओं के यहाँ

पल्लव की डायरी
कैद जिंदगी अपनी
,चंद आकाओं के यहाँ हो गयी है
बेहतरी अपनी हम कैसे लाये
जाल में फँसाने की साजिशें हो गयी
रहन सहन खान पान सब इनके अधीन
तय उम्र भी इनके यहाँ पेटेंट हो ग़यी
मरी पड़ी है मानवता
इनके दाँबो से कई देशो की
 अखण्डता भंग हो ग़यी
मानवता आयोग बना हथियार
दादागिरी से संसाधन लूट कर
जग में गरीबी फैलाने की आदत हो गयी
वायरस बनाकर,
गुलाम बनाने की शुरुआत हो गयी
                                           प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #humanrights तय उम्र भी अब पेटेंट हो ग़यी
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