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(ओ रे मन ) कोई चाहत ,प्रीत बनकर भीतर अब क्यों रोती

(ओ रे मन )
कोई चाहत ,प्रीत बनकर
भीतर अब क्यों रोती है ,
कैसा है ये पागलपन सा
मन इसकी भी तो हद होती है ,विचलित होता सुनकर उलझन ,कोरे कागज सा लागे पल ,अनकही सी उस उलझन मॆं उलझने की ,
तेरी भी क्या फितरत होती है ,शांत लागे जब न कोई बातें ,किसको प्रकट करे सौगातें ,जिसको लाता है तू हर क्षण ,चंचल चित्त है मन भावन, कैसे सामना करे हम उस पल
जब तू निकल पड़े भ्रमण ,
खुशी मिले या हो उदासी ,
ओ रे मन तू कहाँ का वासी हर परिस्थति को जीवंत दर्शाये ,पहलू बनकर सबको लुभाये ,कैसे लिखूं मैं दास्तान तुझ पर ,कैसा चंचल तू ओ रे मन ।
# स्वातिकीकलमसे । #ओरे मन.😊 #स्वातिकीकलमसे।
(ओ रे मन )
कोई चाहत ,प्रीत बनकर
भीतर अब क्यों रोती है ,
कैसा है ये पागलपन सा
मन इसकी भी तो हद होती है ,विचलित होता सुनकर उलझन ,कोरे कागज सा लागे पल ,अनकही सी उस उलझन मॆं उलझने की ,
तेरी भी क्या फितरत होती है ,शांत लागे जब न कोई बातें ,किसको प्रकट करे सौगातें ,जिसको लाता है तू हर क्षण ,चंचल चित्त है मन भावन, कैसे सामना करे हम उस पल
जब तू निकल पड़े भ्रमण ,
खुशी मिले या हो उदासी ,
ओ रे मन तू कहाँ का वासी हर परिस्थति को जीवंत दर्शाये ,पहलू बनकर सबको लुभाये ,कैसे लिखूं मैं दास्तान तुझ पर ,कैसा चंचल तू ओ रे मन ।
# स्वातिकीकलमसे । #ओरे मन.😊 #स्वातिकीकलमसे।
swatisoni4835

swati soni

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