लोग इश्क़ पढ़ते तो मैं ज़ाहिर होता ... और समझते भी तो क्यां आख़िर होता..। तमाम उम्र सिने में दिल संभाल बैठा... अक्ल पर गौर करता तो शातिर होता..। अच्छा हुआ कि,जिस्म मॆं रूँह रख दी तो... बदन ग़र बदन होता तो काफ़िर होता..। भीतरी एहसास ने डुबोया मुझको ... ये दिल बाहर होता तो माहिर होता..। ज़ाहिर