अब मैं बैठ नही सकता। खुद को सीसे में देख नही सकता। समाज यही हैं अपना, जहां बेटियों को आज़ादी नही, क्या ये देश की बर्बादी नही। बैचैन कब तक रहू, मैं अपनी गुहार किससे कहु, माँ है, बेटी है, बेहेन है वो अपनी मैं इन दरिंदों को देख अब देख नही सकता। फाँसी की बात, कम हैं अब यहां सजाएं मौत कम हैं अब इनका हस्सल ये कर जाओ कि कोई देख न सके। फिर इन जैसा कोई अपनी माँ बेटी बहनो पट बुरी क्या अच्छी नज़रो भी फेक न सके। बस हो गया अब तुम संकल्प लो तुम प्रण लो तुम अपने देश की इज़्ज़त बचाओ।। कब कब देश को लूटोगे।।