दिल से....... संजीदगी से किया गया,इश्क़... हो सकता है, कैसे ?बेपरवाह ! छोड़ सकता है ,कैसे ? उसका हाथ अपने हाथों से , इश्क़ ! हो सकता है।  बेबस ,लाचार बेपरवाह नहीं , इश्क़ !दर्द देता है , नींदें ,उडाता है , बेचैन ,करता है। जलता है ,घुटता है , पाना चाहता है। अपनी उस मंजिल को ! पता पूछता है। उस रहनुमा का ! ख्यालों में ,बेचैनियों में , ढूढंता है ,उस ख़्याल को ! संजीदगी से ,तराशता है। उससे जुड़े ख्यालों को ! पा लेना चाहता है , उसके ख्वाबों को ! ज़िंदगी को जोड़ता है , उसके हर ग़म ,ख़ुशी से ! ये बेपरवाही नहीं , ये इश्क़ की पराकाष्ठा है। ©Laxmi Tyagi # इश्क़ की पराकाष्ठा #Art