सुख-दुख उन एहसासों में उड़ाए गए लोगों के उपहासों में पैरों के उन हर बढ़ते कदम पर नींद में पड़े उन हर स्वप्न पर पता नहीं क्यों तुम ही याद आती हो हर विकट परिस्थितियों में तुम साथ खड़े होकर सर को सहलाती हो। जब मैं रहता हूं दुख में तुम भी नहीं रह पाती सुख में मेरा साहस, वह बढ़ाती खुश है वह मुझे दिखाती। उन मासूम चेहरे को देखकर मैं भी मंत्रमुग्ध हो जाता हूं कोई भी विपदा जब पड़ता मुझपर उसको साथ खड़े मैं पाता हूं। तुमही मेरी रुक्मणी और राधा और पतिवर्ता देवी सीता हो वेद धर्म ग्रंथ शिवपुराण तुमही पवित्र रामायण और गीता हो। हे प्राण प्रिय आग्रह है तुमसे मुझसे कभी नहीं रूठ जाना मैं यह माना गलती हो सकती पर मेरे प्यार को तुम ना ठुकराना। सभी प्यार करने वालों को समर्पित। क्षमा करना त्रुटि के लिए।🙏🙏