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पल्लव की डायरी झूमे मेरा अंग अंग जबानी अँगड़ाई ले र

पल्लव की डायरी
झूमे मेरा अंग अंग
जबानी अँगड़ाई ले रही है
सपनो में खोयी खोयी में
धरती से आकाश तक को
आवाज दे रही हूँ
वादिया महकी है निश्छल भाव से
स्वागत प्रकृति का कर रही है
अनजान है सब एक दूसरे से
मगर प्यार की ज्योती जल रही है
विरह की वेदना मेरे अंदर भी है
दस्तक कोई दे, तो मै भी कली से
फूल बनकर महकू हरदम
                                   प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #Behna कली से फूल बनकर महकू हरदम
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