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तलाकशुदा स्त्री ------------------------ क्या कोई

तलाकशुदा स्त्री
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क्या कोई है जो समझे,
उसकी मनोभावना को,
उसके टूटे अंतर्मन को,
बिखर जाना उसका लोगों की सोच से,
है वो कितनी बेबस,लाचार और 
बदनामी की चादर से खुद को ढके हुए,
क्या कोई है समझने वाला,
उसके कितने सपने चूर हुए
जिसे उसने बुना था संजोया था,
ना जाने कितनी उम्मीदों के साथ,
क्या कोई है जो उसके चूर हुए सपनों
का हिसाब दे,
दे कोई हिसाब उसके उन सपनों का 
जो पूरे होने से पहले ही उसकी आखों में विलीन हो गए ,
उसके अपने फैसले पर
दबा दिया जाता है 
उसे ऊंच-नीच ,छोटा-बड़ा, जात-पात जैसे रूढ़ीवादी परंपराओं तले,
उसे नाम दे दिए जाता है अलग-अलग,
जो भी समझदार लोगों की समझ में आता है,
कोई उसे बेहया,
कोई उसे बदचलन,
कोई उसे समाज पर धब्बा कह देता है,
क्या कोई है जो समझे,
उसके इन नामों की वजह के जड़ को,
इस नाम से होने वाली उसकी पीड़ा को, 
उसके अकेलेपन को, 
उसके बेबसीपन को,
उसके जीवन जीने की चाह को,
उसके बेरंग पड़े मुस्कान को,
क्या इसके लिए वो अकेले ही जिम्मेदार है,
यदि नही
तो वो सभी उसके ही जैसे नामों के हकदार है,
जिन्होंने भी खड़ा किया है उसे जीवन के इस दो राहे पर...

©Abhi
  तलाकशुदा स्त्री
abhinaykumar3046

Abhi

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तलाकशुदा स्त्री #कविता

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