सखियां करती फागुन की बातें, ये सखी,कैसे कटें ये तन्हा रातें, आ गया बसंत,दुख भए अनंत, दिन तो बीता प्रियतम की बाट जोहते, कैसे बीतें बैरन रातें, यार मिले कोई तलबगार,कसक मिटे मन की, राग मल्हार फगुआ गाए,प्रीत मिले न यौवन की, मन मतंग,करता है तंग,फीका सा लागे मोहे लाल रंग, हे कंत,कर बिरह का अंत,पुलक उठे मोरा अंग अंग,, फागुन का बिरह,