रोज सुबह उठ के में खिड़की के पर्दे खोलता था और बड़ी गौर से सामने की खिड़की को देखता था कभी कभी किस्मत साथ दे जाती थी और वो पर्दे खोले बालों को सुखाती थी में भी अंगड़ाई के बहाने बालकनी में आ जाता था एक नज़र देखता उसे फिर नज़रे जुका लेता था कभी बालकनी में वो कपडे सुखाने आती थी