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घर-घर देखो सभी खड़े हैं, नफरत का औजार लिए।। दौलत

घर-घर देखो सभी खड़े हैं,
नफरत का औजार लिए।। 
दौलत की खातिर भाई ने,
अपने भाई मार दिए।। 
पाल-पोसकर जिसने पाला,
वही बाप असहाय खड़ा।। 
घर बनवाया जिसने देखो,
वही आज निस्सहाय पड़ा।। 
ईश्वर-रूपी मात-पिता पर, 
पड़ी दुखों की छाया है।। 
मानव-मानव शत्रु बने,
मानवता-तरु कुम्हलाया है।।

@poetryofsoul

©Shashank मणि Yadava "सनम"
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