जान का भाव गिर गया है इंसानियत के बाजार में मरने वालों का आंकड़ा भी सही नहीं है अखबार में देश में वोटों की गिनती कर लेती है सियासत मगर मगर क्या मुर्दों का लेखा जोखा कौन करे बेकार में किसी घर में कोई दीया जलाने वाला भी नहीं रहा कोई हिसाब लगा रहा कितना घाटा हुआ व्यापार में उसका मुँह लटका हुआ है अब पिज्जा नहीं मिलेगा और कहीं बच्चे चाव से खा रहे रोटी ही आचार में बेटे की अर्थी को कंधा दे रहे बाप को देख लोग बोले बुड्ढे को देखो कितने बरस जी गया मौत के इंतज़ार में ग़र एटीट्यूड में ही रहना है 'सनम' तो सिंगल ही रह फिर सोच ले कंप्रोमाइज करना ही पड़ता है प्यार में ©technocrat_sanam Chand n bdla.. Suraj n bdla.. Kitna badl gya insan.. 🎶 🎼 🎵 #जान_का_भाव जान का भाव गिर गया है इंसानियत के बाजार में मरने वालों का आंकड़ा भी सही नहीं है अखबार में