किसान की जिंदगानी और मेरी जुबानी मैं जलूंगा तो मेरे घर का चूल्हा जलेगा, बुझ गया जो मैं तो चूल्हा भी बुझेगा | खाक होकर भी, मुझमे एक चिंगारी ऐसी रहेगी, हर नये चूल्हे की जरूरत अब ये चिंगारी रहेगी | लाख के महलों में भी जिंदगी मुझसे पलेगी , शौक मेरे, खेत की लहलहाती फसलें रहेंगी | गहने, गाड़ी और महल सब पेट तो भरते नहीं, मेरी मेहनत इस धरा पर भूख से लड़ती रहेगी | सोच कर देखो जरा मुझसे जब होगी सूनी धरा, तब खुशी के साधनों संग जिंदगी छोटी लगेगी | बच न पाओगे धरा पर जब जिंदगी रूठी लगेगी, याद कर कर के मुझे, जिंदगी तब खोनी पड़ेगी | मेरी मेहनत की भी हिफाजत में एक बस आवाज देदो, भूख से सबको बचाने के लिए ये जंग मरते दम चलेगी | हम किसानों की ये पहल जिंदगी की जंग में सामिल रहेगी| #किसानों की जिंदगानी मेरी जुबानी |