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बालकनी के एक कोने में सिमटे हुए अगणित रातें बिताई

बालकनी के एक कोने में सिमटे हुए
अगणित रातें बिताई हैं सुबकते हुए
आज भी वहीं बैठे हैं
दिल में छुपा गम है
पर आँख आज न नम है

पता नहीं क्यों...
या शायद पता है क्यों...







किसी फरिशते नुमा शख़्स ने सिखाया हमें कि
गम को दिल से निकाल सकते हैं
सिर्फ आँसू से ही नहीं, बल्कि कलम से भी बालकनी के एक कोने में
बालकनी के एक कोने में सिमटे हुए
अगणित रातें बिताई हैं सुबकते हुए
आज भी वहीं बैठे हैं
दिल में छुपा गम है
पर आँख आज न नम है

पता नहीं क्यों...
या शायद पता है क्यों...







किसी फरिशते नुमा शख़्स ने सिखाया हमें कि
गम को दिल से निकाल सकते हैं
सिर्फ आँसू से ही नहीं, बल्कि कलम से भी बालकनी के एक कोने में
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