लिख दिया है अहल-ए-दिल हमने क़िर्तास पर तुमसे मिलने की ख्वाहिश मगर बाकी ही रही मोड़ कर एक कोना नाम तेरा लिखा है वहाँ रंगीन हो गया वो कोना स्याही अश्क़ में बही गहराइयों में दिल की तुम धड़कन बनकर रहती हो तुम बिन ये ज़िंदगी होगी कभी मुक़्क़मल नहीं (शेष अनुशीर्षक में) तन्हाइयों की महफ़िलों में हम भी बदनाम है आशिक़ों की जुबान से नाम ये हटता है नहीं लिखते है खत तुमको पर भेजते नहीं कभी बदल गया पता तुम्हारा जहाँ डाकिया नहीं सिरहाने पर सूखा गुलाब है गवाही इश्क़ की पर यहाँ इंसाफ़ की कोई गुंजाइश रही नहीं