मैं वो फूल नहीं हूं जिसको मुरझाना आता है । मैं जलता हुआ वो आग नहीं जिसको राख हो जाना आता है। मैं दुविधा में अपनी सुविधा का कैसे विचार करूं। कैसे मन उद्धार करू । है निष्पाप मन से जो अपनी विशिष्टता से मैं कैसे उसे कलंकित करू। अपने स्वाभिमान मान सम्मान का भला कैसे मैं परित्याग करूं। अब धैर्य कितना रखु। सहनशीलता की मूर्ति बन कर भला कब तक मौन रह पाऊंगी अपनी लाचारी का उतरन भला कैसे मैं तुम्हें ओढ़ा पाऊंगी। #devinasri#मौन नहीं रह पाऊंगी#🤗🤗#poetry