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काफी दूर हूँ घर से पर देखो न आज सबसे ज्यादा मेरे

काफी दूर हूँ घर से पर देखो न आज सबसे ज्यादा
 मेरे घर का वो हँसता खेलता माहौल याद आया है
घिर आयी है काली काली घटाए देखो सावन आया है

झुलसती जा रही थी जब कोमल पौधे की काया तब
ठंडे ठंडे हवा के झोखे संग में अपार खुशियां लाया है
घिर आयी है काली काली घटाए देखो सावन आया है

झूम उठी है मयूर टोली गूँज रही कूउह कूउह की बोली
नीरस पड़ी धरती ने भी हरियाली का आँचल लहराया है
घिर आयी है काली काली घटाए देखो सावन आया है

न फिक्र है भीगे कपड़ो की न ही कीचड़ सने पैरों की
कागज़ की नावों में बीताया बचपन फिर किसने पाया है
घिर आयी है काली काली घटाए देखो सावन आया है

बीत गयी जवानी भी भीगी सड़को पर चाय पकौडो में
 प्रिय के संग बीते मधुर पलों सा सुकून कौन दे पाया है
घिर आयी है काली काली घटाए देखो सावन आया है

इंतजार रहता जिस मौसम का बेसब्री से सबको साल भर
माटी की सोंधी महक के संग बेल धूप की सुगंध लाया है
घिर आयी है काली काली घटाए देखो सावन आया है

अब छाप रह गयी है बस यादों में बारिश के मौसम की
जिसमें हर बारिश को हमनें बख़ूबी मंदिर सा सजाया है
घिर आयी है काली काली घटाए देखो सावन आया है

©Rekha (sahar)
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