आसान मंज़िल सबक आसान मंजिल का पढ़ना जरूरी था टूटती श्रृंखलाओं का जुड़ना भी जरूरी था। यादों की पुलकन उडेलती हूं, देर सबेर ही सही कल्पना करना जरूरी था। सादगी भरी जिंदगी में, वर्षों की ओढ़ी गरीबी का हटना जरूरी था। अपराधी प्रवृत्तियां टलें समस्या थी बड़ी बेशक समाधान करना और सबक पढ़ना जरूरी था। बेहतर संभावनाओं की तलाश में, निर्विकार भाव से कर्मों का करना जरूरी था।। ©Shilpa yadav #WForWriters #WForWriters Darshan राaj...✍ Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय"