क्या औकात है ऐ ज़िन्दगी तेरी मेरे सामने चार दिन की मोहब्बत ही तुझे बर्बाद कर देती देती क्या औकात है ऐ ज़िन्दगी तेरी मेरे सामने चार दिन की मोहब्बत ही तुझे बर्बाद कर देती देती