वो पीपल की छाँव छोड़कर अपना सुन्दर गाँव छोड़कर शहर में आ गए वे भटकते ममता की वो छाँव छोड़कर खेती खलियानी सब छोड़ी, तोड़ी हर रिश्ते की डोरी घर छोड़ मकान ढूँढ़ते, माटी की गुल्लक तक फोड़ी क्या था पता सब झूठ यहाँ है, मेहनत की 'हाँ 'लूट यहाँ है झूठे सपनों के खातिर छूट गया घर द्वार याद आता है आज भी उनको गाँव वाला प्यार किस्तों में जीवन हैं यहाँ, मकानों के वन हैं यहाँ तुमने ही तो मकाँ बनाए, पर खुद बेघर रहें यहाँ बाँध के गठरी लेकर कुनबा निकल पड़े पैदल पेट -पीठ सब एक किये वे चलते रहें अविरल चलते -चलते भूख -प्यास से होते रहें विकल बूढ़े, बच्चे, नर -नारी से भरा प्रवासी दल कैसी विपदा आईभारी!कैसे श्रमिक इससे बचे ऐसे विषम समय पर भी खेल सियासत है रचे महामारी तो एक बहाना, राह खड़ी है मौत अटल बाँध के गठरी लेकर कुनबा निकल पड़े पैदल | पेट -पीठ सब एक किये वे चलते रहें अविरल || स्मृति..... मोनिका ✍️ #twilight #बाँध के गठरी लेकर कुनबा निकल पड़े पैदल