आज अदब के काबे पर, रब भी राज़ी हो गया चूम मुनव्वर के पैरो को, मैं भी हाज़ी हो गया चेहरे पर चमकें सात सहर, साया भी उसका नूर चलें कदम जो उसके जा़निब, जन्नत कितनी दूर जाहिल था अल्हड़ बंजारा, मैं भी काज़ी हो गया चूम मुनव्वर के पैरो को, मैं भी हाज़ी हो गया अल्फाज़ों की खरी चासनी, मिट्टी के दो तार अज़ानों से जड़े रूह में, सलत किया हर बार मैं काफिर अल्हड़ बंजारा, आज नमाज़ी हो गया चूम मुनव्वर के पैरो को, मैं भी हाज़ी हो गया आज अदब के काबे पर, रब भी राज़ी हो गया चूम मुनव्वर के पैरो को, मैं भी हाज़ी हो गया मुनव्वर के पैरों में