काश परिन्दों के जैसी होती ज़िन्दगी हमारी l हर दिन के ढ़लते अपने आशियाने में होते ll जब से हुए हम समझदार ज़ानिब ए दुनिया l शुकूँ को तरस्ती हैं ये बेब़स सी आँखें ll दो वक़्त की रोटी कमाने जो निकले l नहीं है मयस्सर ना शुकूँ और ना रोटी ll #lifelessons #wishfulthinking