दुनिया भी तेरी है,रास्ता भी तेरा है मैं रातों का मुसाफ़िर हूँ,तू मंज़िलों का सवेरा है जाना है किधर मुझे,ये भी तुम बता दो मैं बहती हुई नदी हूँ,तू सागर कोई गहरा है पत्तों को छूकर बूंदें,मिट्टी में मिल गई हैं गुज़र गया है कोई लम्हा,बस बातें रह गई हैं तक़दीर ने दिया था,तक़दीर ने लिया है चंद लकीरों का खेल है सब नहीं किसी से कोई गिला है हिचकियां भी आ रही हैं,पानी भी पिया है उतरता नहीं है जो ज़हन से किसका वो चेहरा है कितना और परखोगे,क्या इतना ही काफ़ी नहीं है दुनिया भर की बंदिशें है और इश्क ये बहरा है.... © abhishek trehan #collabwithकोराकाग़ज़ #kksc15 #इश्क़कीहिचकियाँ #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #manawoawaratha