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कभी-कभी तो मंजिलें, मुंडेर के पास ही मिल जाती हैं।

कभी-कभी तो मंजिलें,
मुंडेर के पास ही मिल जाती हैं।

कभी-कभी इशारों
 से अपने पास बुलाती हैं।

सपने दिखाती हैं,
 पर कभी पास नहीं आती हैं।

मंजिलों की चाहत में, दिल ही
 दिल में अक्सर उठती है बगावत।

©Anuj Ray
  #कभी कभी तो मंजिलें
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Anuj Ray

Bronze Star
New Creator
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कभी कभी तो मंजिलें #कविता

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